साजन की गोद में सिर मेरा,जबसाजननेखोलीमोरीअंगिया
आवारा साजन के हाथ सखीऊँगली के कोरों से उसने, स्तन को तोड़ मरोड़ दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.फिर साजन ने सिर पीछे से, होंठों को मेरे चूम लियाकुछ और आगे बढ़ स्तन पर, चुम्बन की झड़ी लगाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन अब थोड़ा और बढ़े, चुम्बन नाभि तक जा पहुँचेनाभि के नीचे भी चुम्बन, मोरा अंग-अंग थर्राय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैंने सोचा अब क्या होगा, उई माँ ! क्या मैंने सोच लियाकुछ और सोचूँ उससे पहले, साजन ने होंठ टिकाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मेरी जंघाएँ फ़ैल गईं, जैसे इस पल को मैं आतुर थीमैं कसमसाई, मैं मचल उठी, मैंने खुद को व्याकुल पायाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.नितम्बों के नीचे पंजे रखकर, उनको ऐसा मसला री सखीमेरे अंग को जल में भीगे, कमल-दल की तरह खिलाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.शायद इतना काफी न था, साजन ने आगे का सोच रखाजिह्वा से मेरे अंग को उसने, उचकाय दिया, उकसाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.उसके नितम्ब मुख के समीप, अंग जैसे था फुफकार रहामैंने फुफकारते उस अंग को, अपने मुंह माहि खींच लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.चहुँ ओर से मेरा अंग खुला, उसने ‘जिह्वा-जीव’ को छोड़ दियावह इतने अन्दर तक जा पहुंची, रोम-रोम में मेरे रस सींच दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैं तो जैसे बेसुध थी सखी, कुछ सोच रही न सूझ रहाउसके उस अंग को मैंने तो, अमवा की भांति चूस लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.जिह्वा उसकी अंग के अन्दर, और अन्दर ही जा धंसती थीमदहोशी के आलम में उसने, सिसकारी लेने को विवश कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मेरे भी अंग मचलते थे, मेरे भी नितम्ब उछलते थेसाजन ने अपना मुंह चौड़ाकर, सर्वस्व अन्दर था खींच लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अब सब कुछ साजन के मुख में था, जिह्वा अंग में थी नाच रही‘काम-शिखर; पे आनन्द चढ़ा, रग-रग में हिलोरें छोड़ गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.दोनों के मुख से ‘आह-प्रवाह’, साजन के अंग से रस बरसासाजन ने अपने ‘अंग-रस’ से, मुख को मेरे सराबोर कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.हम निश्चल से आपस में लिपटे, उस पल के बारे में सोच रहेजिस पल में अपना सब खोकर, एक दूजे का सब पाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अब मेरे मन में कोई प्रश्न न था, मैंने सब उत्तर पाए सखीइस उनहत्तर (69) से उनके मुख से, कोटि सुख मुझमें समाये सखीऐसे साजन पर वारी मैं, जिसने अद्भुत ये प्यार दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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